कठ उपनिषद्
लेखक | वेदव्यास |
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रचनाकार | अन्य पौराणिक ऋषि |
भाषा | संस्कृत |
शृंखला | कृष्ण यजुर्वेदीय उपनिषद |
विषय | ज्ञान योग, द्वैत अद्वैत सिद्धान्त |
शैली | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
प्रकाशन स्थान | भारत |
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हिंदू शास्त्र और ग्रंथ |
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कालक्रम |
कठ उपनिषद् या कठोपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। 'कठ' नाम पाणिनि के अष्टाध्यायी में प्राप्त होता है। एक मुनिविशेष का भी नाम 'कठ' था। यह वेद की कठ शाखा के प्रवर्तक थे। पतंजलि के महाभाष्य के अनुसार कठ, वैशंपायन के शिष्य थे।
शान्ति मन्त्र
[संपादित करें]इस उपनिषद का शान्तिपाठ निम्न है:
- ॐ सह नाववतु।
- सह नौ भुनक्तु।
- सह वीर्यं करवावहै।
- तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
- ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
उपनिषद सार
[संपादित करें]यह उपनिषद आत्म-विषयक आख्यायिका से आरम्भ होती है । प्रमुख रूप से यमराज और नचिकेता के प्रश्न-प्रतिप्रश्न के रुप में है । नचिकेता के पिता , ऋषि अरुण के पुत्र उद्दालक लौकिक कीर्ति की इच्छा से विश्वजित (अर्थात विश्व को जीतने का) यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं । याजक अपनी समग्र सम्पत्ति का दान कर दे यह इस यज्ञ की प्रमुख विधि है । इस विधि का अनुसरण करते हुए उसने अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दी । वह निर्धन था इसलिए उसके पास कुछ गायें पीतोदक (जो जल पी चुकी हैं ) जग्धतृण (जो घास खा चुकी हैं अर्थात जिनमें घास खाने की सामर्थ्य नहीं है ) दुग्धदोहा (जिनका दूध दुह लिया गया है) निरिन्द्रिय(जिनकी प्रजनन शक्ति समाप्त हो गयी है ) और दुर्बल थीं । नचिकेता ने जब देखा की उसका पिता ऐसी गायों को दान में दे रहा है तो उसका मन जाग उठा, ऐसी गायें तो दान की श्रेणी में ना आयेंगी, ऐसा दान तो स्वीकार ना होगा और ना मेरे पिता का याग सफल होगा। यह सोचकर पुत्र नचिकेता ने अपने पिता से कहा, इस प्रकार के दान से तो आपका याग सफल न होगा न आपकी आत्मा का अभ्युदय होगा। अगर दान करना ही है तो आपको अपनी सबसे प्रिय वस्तु का दान करना चाहिए, पिता के लिए पुत्र से प्रिय क्या हो सकता है , आप में सचमुच दान की भावना है तो मुझे दान कीजिये, "कहिये मुझे किसको दान में देने को तैयार हैं" - कस्मै मा दास्यसि ? पिता ने पुत्र की बात अनसुनी कर दी ; समझा नादान बालक है। जब नचिकेता ने देखा की उसका पिता उद्दालक उसकी बात पर ध्यान नहीं दे रहा है तो उसी प्रश्न को उसने कई बार दोहराया - "मुझे किसे दोगे" ? तब क्रोधित होकर पिता ने कहा - तुझे मृत्यु को दान में देता हूँ (मृत्यवे त्वा ददामि)।
यह सुन नचिकेता मृत्यु अर्थात यमाचार्य के पास गया और उनसे तीन वर मांगें -
१- हे यमाचार्य, जब मैं घर से निकला था तो मेरे पिता क्रोध में भरे हुए थे। आप पहला वर तो यह दीजिये कि जब मैं घर लौटूं तो मेरे पिता "वीतमन्यु" - क्रोधरहित , "शान्त संकल्पः" - शांत चित्त के मिलें।
२- दूसरा अग्नि विद्या जानने के बारे में था।
३- तीसरा वर मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान को लेकर था।
यम ने अन्तिम वर को टालने की भरपूर कोशिश की और नचिकेता को आत्मज्ञान के बदले कई सांसारिक सुख-सुविधाओं को देने का लालच दिया, लेकिन नचिकेता को मृत्यु का रहस्य जानना था। अतः नचिकेता ने सभी सुख-सुविधाओं को नाशवान जानते हुए नकार दिया। अंत में विवश होकर यमराज ने जन्म-मृत्यु से जुड़े रहस्य बताए।
सन्दर्भ कृपया चिन्मय मिशन
[संपादित करें]द्वारा प्रकाशकठोपनिषद पढ़े।और भी देखें
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[संपादित करें]मूल ग्रन्थ
[संपादित करें]अनुवाद
[संपादित करें]- Translations of major Upanishads
- 11 principal Upanishads with translations
- Translations of principal Upanishads at sankaracharya.org
- Upanishads and other Vedanta texts
- डॉ मृदुल कीर्ति द्वारा उपनिषदों का हिन्दी काव्य रूपान्तरण
- Complete translation on-line into English of all 108 Upaniṣad-s [not only the 11 (or so) major ones to which the foregoing links are meagerly restricted]-- lacking, however, diacritical marks