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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/६९

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  • शाहीमहलसरा* जारी करते हो ! अजी; दोस्ती में आय'लफन हमिज़ जायज़ नहीं है ।"

मैंने हस कर कहा,--"कौर, यह तुम्हारी ऐन महरबानी है, वरन वंदा ते। इस काधिल भी नहीं है कि तुम्हारी जूतियों तक भी रसाई पासके मगर खेर, यह तो बतलाओं कि मैं तो उस रियावाले पुतले के आगे बेहोश था, फिर यहां क्यों कर आगया ? . परीजमाल ने कहा, "यह एक खुदा की मिहरवाती थी कि ऐन मौके पर मुझे मेरी लौंडी ने इस बात की खबर दी और कहा कि,"आप का चूलफ़ महल सरा के अन्दरही मौजूद है और उसकी जान 'चाहे खंजर ' से ली जारही है। " बस, इतना सुनते ही मैंने किसी हिकमत से तुम्हें जल्द वहांसे छुड़ा मंगाया और यहां पर बड़ी हिफ़ाज़त के साथ रक्खा।" . मैंने कहा- अल्हादलिल्लाह ! लेकिन, मुझे यहां पर आए कै दिन हुए ? " यहा-“सिर्फ सात दिन !" मैं,--" एक हफ्तः !!!" वह,-"हां, ताज्जुब न करो, क्योंकि तुम इतने काहिल और सुस्त होगये थे कि अगर बड़ी हिफाज़त और मुस्तैदी के साथ तुम्हारा इलाज न किया जाता तो अजब नहीं कि तुम्हारे दुश्मनों की जानों पर आ बनती । लेकिन शुक्र है खुदा का कि तुम बच गए और वहुन जल्द अच्छे हुए 1". मैं,--" तो क्या, जिस दिन मैं यहां पर लाया गया था, उसके बाद आज ही मैं होश में आया हूँ ?" ____चह,–“नहीं, देश में तो तुम उसी रोज आगये थे,लेकिन हकीम की यह राय थी कि जब तक तुम्हारे दिल में पूरी ताकत न पहुंच ले, तुम होश में न लाए जाओ; क्योंकि अगर दिल की कमजोरी की हालत में तुम होश में आते तो बीमारी के बढ़ने का खौफ़ हाता। चुनांचे उस वाके साथ इस अन्दाज़ ले तुमको शराब पिलाई जाती