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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/६२

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  • छनऊ का का स्वीर को दिलाम की तस्वीर मान लेने में मुझे कोई भी शक न रह जात।

इसी किस्म की बाते मैं सोच रहा था कि यकायक मेरा ख़याल बदल गया और मैं सोचने लगा कि ऐसा भी हो सकता है कि मजीर के साथ दिलाराम निकल बाई हो और उस ( नज़ीर ) ने दिलाराम को बादशाह की खिदमत में पेश कर दिया हो! इस लिये कि अगर दिलाराम बादशाह को अपनी मुट्ठी में कर लेगो तो उस (नज़ीर ) को खूब दौलतद्धस्तयाब है।गी । यही सबब है कि दिलाराम शाहीमहल. सरा के अन्दर है और आसमानो कुटनो के साथ इसके पास नजीर भाता जाता था, जो मेरे हाथों मारा गया और उसके एवज़ में मैं शाक्षीमहलसरा के अन्दर आ गया! .. मुमकिन है कि दिलाराम ने किसी हिकमत से अपने उस निशामको भी मिटा डाला होगा, जिसे एक मतंबः मैंने देखना चाहा था, लैकिन कोई भी निशान इस [ दूसरी) दिलाराम के जिस्मपर नकार न आया। बस, जो कुछ हो, यह दिलाराम ही है, वरने आसामानी के जुल्म से यह मेरी जान क्यों बचाती और आशिक (नजीर ) के खनी ( मुझ) को किस तरह ऑफ़ करती ! अब यह मुझसे ज़ोर खसम, के रिस्ते को न रख कर 'आशिक माशूक' के रिस्तेको कायम किया चाहती है, यही वजह है कि यह चालाकी से अब मेरे आगे दिलाराम नहीं बनना चाहतीं। ___ अगर मेग सोचना सही हो और वाकई यह दिलारामही हो तो मय मुझे इसके साथ क्योकर पेश आना चाहिए? यह एक ऐसा सवाल मैंने अपने दिल से किया कि जिलयर नह देर तक गौर करता रहा और अखीर में उसने मुझे जो कुछ जबाब दिया, उसका मतलब यही है कि मैं उपके साथ, उसके बमुजिब मस्ती करलं, और कुछ दिन तक उसके साथ ऐशो आराम करू, इस से मुमकिन है कि उसको हरकतों, खस्लतों, खासियतों और आदती