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देवगुप्तप्राचीन भारत में तीसरी सदी से पाँचवी सदी तक मगध के शासन थे। इस वंश के परवर्ती गुप्त नरेशों ने भी उत्तरी भारत में शासन किया। यद्यपि 'देवगुप्त' तथा इन अन्य राजाओं के नामों के अंत में 'गुप्त' शब्द जुड़ा है तथापि यह सिद्ध करना कठिन है कि अनुवर्ती गुप्त नरेश विख्यात गुप्त सम्राटों के वंशज थे।

देवगुप्त का नाम 'हर्षचरित' तथा अभिलेखों में आता है जिस आधार पर इसे परवर्ती गुप्त राजा मानते हैं। बिहार के गया नगर के समीप अफसद से प्राप्त एक लेख में परवर्ती नरेशों की वंशावली उल्लिखित है। इस वंश के छठे राजा महासेन गुप्त का ज्येष्ठ पुत्र देवगुप्त ही था। हर्षचरित में कहा गया है कि महासेन गुप्त ने पूर्वी मालवा पर गुप्तकुल की प्रतिष्ठापना की, उसी के बाद देवगुप्त वहाँ का शासक हो गया। छठी शती के चार प्रमुख राजकुलों में पुष्पभूति तथा परवर्ती गुप्त वंशों में मैत्री थी तथा देवगुप्त और गौड़ नरेश कन्नौज के मौखरिवंश से ईर्षा रखते थे। देव गुप्त ने शशांक से मिलकर मौखरि राजा ग्रहवर्मा का बध कर डाला। हर्षचरित में ग्रहवर्मा का घातक मालवराज कहा गया है जिसे कालांतर में राज्यवर्धन ने परास्त किया। वर्धन ताम्रपट्टों के अनुसार राज्यवर्धन ने देवगुप्त को हाराया था (राजानोयुधिदुष्टवाजिन इव श्रीदेवगुप्तादय:) अतएव मालव नरेश देवगुप्त ही ठहरता है।

इससे भिन्न देववर्णाक अभिलेख में वर्णित देवगुप्त आदित्यसेन का पुत्र कहा गया है। उसे ६८० ई. में चालुक्य नरेश विनयादित्य ने परास्त किया था। उसे 'सकलोत्तरापथनाथ' भी कहा गया है, पर इस देवगुप्त की समता प्रसिद्ध मालव नरेश देवगुप्त से नहीं की जा सकती। दोनों दो भिन्न व्यक्ति थे।