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मजहब की आलोचना

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(धर्म की आलोचना से अनुप्रेषित)

मजहब की आलोचना से आशय मजहब के विचार, मजहब के सत्य या मजहब के व्यावहारिक पक्ष की आलोचना से है। इसमें मजहब के राजनैतिक एवं सामाजिक परिणामों की आलोचना भी सम्मिलित है।

ऐतिहासिक दृष्टि से मजहब की आलोचना का इतिहास बहुत पुराना है। यूनान में ५वीं शताब्दी ईसापूर्व में डायागोरस (मेलोस का नास्तिक) ने मजहब की आलोचना की है। इसी तरह प्राचीन रोम में प्रथम शताब्दी ईसापूर्व में लुक्रेटिअस डी ररेरम नेचुरा इसका उदाहरण है।

मजहब के आलोचक सामान्यतः मजहब को समयातीत (आउटडेटेड), व्यक्ति के लिए हानिकारक, समाज के लिए हानिकर, विज्ञान के विकास के लिए एक बाधा, अनैतिक कानूनों या प्रथाओं का एक स्रोत तथा सामाजिक नियन्त्रण का एक राजनैतिक औजार मानते हैं।

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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