"गीताप्रेस": अवतरणों में अंतर
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'''गीताप्रेस''' या '''गीता मुद्रणालय''', विश्व की सर्वाधिक [[हिन्दू|sanatan]]<nowiki/>धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है। यह पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] के [[गोरखपुर]] शहर के गीता प्रेस रोड क्षेत्र में स्थित एक भवन में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन और मुद्रण का काम कर रही है।[[भारत सरकार]] ने शांति में योगदान हेतु गीताप्रेस को वर्ष २०२१ का '''[[गांधी शांति पुरस्कार]]''' देने की घोषणा की है <ref>[https://www.loktej.com/article/92990/gorakhpur-based-geeta-press-will-receive-the-gandhi-peace-prize-for गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को मिलेगा 2021 का गांधी शांति पुरस्कार]</ref> |
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⚫ | गीताप्रेस को [[भारत]] में घर-घर में [[श्रीरामचरितमानस|रामचरितमानस]] और [[श्रीमद्भगवद्गीता|भगवद्गीता]] को पहुंचाने का श्रेय जाता है। गीता प्रेस की पुस्तकों की बिक्री 18 निजी थोक दुकानों के अलावा हजारों पुस्तक विक्रेताओं और ४२ प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर बने गीता प्रेस के बुक स्टॉलों के जरिए की जाती है। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा '''कल्याण''' (हिन्दी मासिक) और '''कल्याण-कल्पतरु''' (इंग्लिश मासिक) का प्रकाशन भी होता है। |
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[[File:Gita Press Gorakhpur outlet at Kanpur Railway Station.jpg|thumb|300PX|गीताप्रेस का [[कानपुर]] रेलवे स्टेशन पर स्टॉल ]]इसमें लगभग २०० कर्मचारी काम करते हैं। यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। देश-दुनिया में हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री कर रही। Or vo knowledge provide karte hai jo ki ek moral personality banane mein sahayak hai saath hi vyarth ke hindu muslim vivadon ko bhi suljhane ka ek accha source kyoki 90percent log apni values nhi jaante |
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== स्थापना एवं परिचय == |
== स्थापना एवं परिचय == |
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गीताप्रेस की स्थापना सन् 1923 ई० में हुई थी। इसके संस्थापक महान गीता-मर्मज्ञ [[जयदयाल गोयन्दका|श्री जयदयाल गोयन्दका]] थे। इस सुदीर्घ अन्तरालमें यह संस्था सद्भावों एवं सत्-साहित्य का उत्तरोत्तर प्रचार-प्रसार करते हुए भगवत्कृपा से निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आज न केवल समूचे भारत में अपितु विदेशों में भी यह अपना स्थान बनाये हुए है। गीताप्रेस ने निःस्वार्थ सेवा-भाव, कर्तव्य-बोध, दायित्व-निर्वाह, प्रभुनिष्ठा, प्राणिमात्र के कल्याण की भावना और आत्मोद्धार की जो सीख दी है, वह सभी के लिये अनुकरणीय आदर्श बना हुआ है। |
गीताप्रेस की स्थापना सन् 1923 ई० में हुई थी। इसके संस्थापक महान गीता-मर्मज्ञ [[जयदयाल गोयन्दका|श्री जयदयाल गोयन्दका]] थे। इस सुदीर्घ अन्तरालमें यह संस्था सद्भावों एवं सत्-साहित्य का उत्तरोत्तर प्रचार-प्रसार करते हुए भगवत्कृपा से निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आज न केवल समूचे भारत में अपितु विदेशों में भी यह अपना स्थान बनाये हुए है। गीताप्रेस ने निःस्वार्थ सेवा-भाव, कर्तव्य-बोध, दायित्व-निर्वाह, प्रभुनिष्ठा, प्राणिमात्र के कल्याण की भावना और आत्मोद्धार की जो सीख दी है, वह सभी के लिये अनुकरणीय आदर्श बना हुआ है। |
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⚫ | गीता प्रेस की लोकप्रिय पत्रिका कल्याण की हर माह 2.30 लाख प्रतियां बिकती हैं। बिक्री के पहले बताए गए आंकड़ों में कल्याण की बिक्री शामिल नहीं है। गीता प्रेस की पुस्तकों की माँग इतनी ज्यादा है कि यह प्रकाशन हाउस मांग पूरी नहीं कर पा रहा है। औद्योगिक रूप से पिछड़े पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस प्रकाशन गृह से हर वर्ष 1.75 करोड़ से अधिक पुस्तकें देश-विदेश में बिकती हैं। |
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⚫ | गीता प्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर लालमणि तिवारी कहते हैं, हम हर रोज 50,000 से ज्यादा किताबें बेचते हैं। दुनिया में किसी भी पब्लिशिंग हाउस की इतनी पुस्तकें नहीं बिकती हैं। धार्मिक पुस्तकों में वर्तमान समय में सबसे अधिक माँग रामचरित मानस की है। गोयन्दका ने कहा कि हमारे कुल कारोबार में 35 प्रतिशत योगदान रामचरित मानस का है। इसके बाद 20 से 25 प्रतिशत का योगदान [[गीता|भगवद्गीता]] की बिक्री का है। |
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⚫ | गीता प्रेस की पुस्तकों की लोकप्रियता |
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⚫ | गीता प्रेस की पुस्तकों की लोकप्रियता का कारण यह है कि इनकी पुस्तकें काफी सस्ती हैं। साथ ही इनकी प्रिटिंग काफी साफसुथरी होती है और फोंट का आकार भी बड़ा होता है। गीताप्रेस का उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं है। यहाँ सद्प्रचार के लिए पुस्तकें छपती हैं। गीता प्रेस की पुस्तकों में [[हनुमान चालीसा]], दुर्गा चालीसा और [[शिव चालीसा]] की कीमत एक रुपये से शुरू होती है। |
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⚫ | तमाम प्रकाशनों के बावजूद गीता प्रेस की मासिक पत्रिका कल्याण की लोकप्रियता कुछ अलग ही है। माना जाता है कि रामायण के अखंड पाठ की शुरुआत कल्याण के विशेषांक में इसके बारे में छपने के बाद ही हुई थी। कल्याण की लोकप्रियता का |
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⚫ | तमाम प्रकाशनों के बावजूद गीता प्रेस की मासिक पत्रिका कल्याण की लोकप्रियता कुछ अलग ही है। माना जाता है कि रामायण के अखंड पाठ की शुरुआत कल्याण के विशेषांक में इसके बारे में छपने के बाद ही हुई थी। कल्याण की लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि शुरुआती अंक में इसकी 1,600 प्रतियाँ छापी गयी थीं, जो आज बढ़कर 2.30 लाख पर पहुँच गयी हैं। [[गरुड पुराण]], [[कूर्म पुराण]], [[वामन पुराण]] और [[विष्णु पुराण]] आदि पुराणों का पहली बार हिन्दी अनुवाद कल्याण में ही प्रकाशित हुआ था। |
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⚫ | [[योगी आदित्यनाथ]] गीतापुर प्रेस के संरक्षक<ref>{{Cite web |url=http://abpnews.abplive.in/india-news/will-good-days-come-for-gita-press-in-yogi-govt-583626 |title=गीता प्रेस गोरखपुर के दिन बदलेंगे? |access-date=29 अप्रैल 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170503044319/http://abpnews.abplive.in/india-news/will-good-days-come-for-gita-press-in-yogi-govt-583626 |archive-date=3 मई 2017 |url-status=dead }}</ref> हैं। |
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== मुख्य प्रकाशन == |
== मुख्य प्रकाशन == |
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गीताप्रेस द्वारा मुख्य रूपसे हिन्दी तथा संस्कृत भाषा में गीताप्रेस का साहित्य प्रकाशित होता है, किन्तु अहिन्दी भाषी लोगों की असुविधा को देखते हुए अब तमिल, तेलुगु, मराठी, कन्नड़, बँगला, गुजराती तथा ओड़िआ आदि प्रान्तीय भाषाओंमें भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं और इस योजना से लोगों को लाभ भी हुआ है। अंग्रेजी भाषा में भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। अब न केवल भारत में अपितु विदेशों में भी यहाँ का प्रकाशन बड़े मनोयोग एवं श्रद्धा से पढ़ा जाता है। प्रवासी भारतीय भी गीता प्रेस का साहित्य पढ़ने के लिये उत्कण्ठित रहते हैं। |
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==गीता प्रेस की कुछ विशेषताएं== |
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गीताप्रेस की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-<ref>[http://panchjanya.com//Encyc/2015/9/4/गीता-प्रेस-रपट---किसने-कहा-बंद-हो-गई-गीता-प्रेस--.aspx गीता प्रेस/रपट - किसने कहा बंद हो गई गीता प्रेस ? ]</ref> |
गीताप्रेस की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-<ref>[http://panchjanya.com//Encyc/2015/9/4/गीता-प्रेस-रपट---किसने-कहा-बंद-हो-गई-गीता-प्रेस--.aspx गीता प्रेस/रपट - किसने कहा बंद हो गई गीता प्रेस ? ]{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }}</ref> |
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* गीता प्रेस सरकार या किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था से किसी तरह का कोई अनुदान नहीं लेता है। |
* गीता प्रेस सरकार या किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था से किसी तरह का कोई अनुदान नहीं लेता है। |
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* गीता प्रेस में प्रतिदिन 50 हजार से अधिक पुस्तकें छपती हैं। |
* गीता प्रेस में प्रतिदिन 50 हजार से अधिक पुस्तकें छपती हैं। |
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अन्य सम्बन्धित संस्थान हैं : |
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* गीता भवन, [[ऋषिकेश]] |
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* ऋषिकुल्-ब्रह्मचर्य आश्रम् (वैदिक विद्यालय), [[चुरू]], राजस्थान |
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* आयुर्वेद संस्थान, ऋषिकेश |
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* गीताप्रेस सेवा दल (प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता करने के लिये) |
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== बाहरी कड़ियाँ == |
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* [https://swarajyamag.com/culture/gita-press-a-century-of-serving-the-cause-of-sanatana-dharma Gita Press: A Century Of Serving The Cause Of Sanatana Dharma] |
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02:13, 12 सितंबर 2024 का अवतरण
गीताप्रेस | |
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स्थापित | 29 अप्रैल 1923 |
संस्थापक | जयदयाल गोयन्दका,
घनश्याम दाम जालान |
उद्गम देश | भारत |
मुख्यालय | गोरखपुर, उत्तर प्रदेश |
वितरण | जग |
प्रकाशन प्रकार | हिन्दू धार्मिक धार्मिक और कल्याण मासिक' |
Nonfiction topics | हिन्दू |
Number of employees | 350 |
आधिकारिक वेबसाइट | www.gitapress.org |
गीताप्रेस या गीता मुद्रणालय, विश्व की सर्वाधिक sanatanधार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के गीता प्रेस रोड क्षेत्र में स्थित एक भवन में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन और मुद्रण का काम कर रही है।भारत सरकार ने शांति में योगदान हेतु गीताप्रेस को वर्ष २०२१ का गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की है [1]
गीताप्रेस को भारत में घर-घर में रामचरितमानस और भगवद्गीता को पहुंचाने का श्रेय जाता है। गीता प्रेस की पुस्तकों की बिक्री 18 निजी थोक दुकानों के अलावा हजारों पुस्तक विक्रेताओं और ४२ प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर बने गीता प्रेस के बुक स्टॉलों के जरिए की जाती है। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा कल्याण (हिन्दी मासिक) और कल्याण-कल्पतरु (इंग्लिश मासिक) का प्रकाशन भी होता है।
इसमें लगभग २०० कर्मचारी काम करते हैं। यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। देश-दुनिया में हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री कर रही। Or vo knowledge provide karte hai jo ki ek moral personality banane mein sahayak hai saath hi vyarth ke hindu muslim vivadon ko bhi suljhane ka ek accha source kyoki 90percent log apni values nhi jaante
स्थापना एवं परिचय
गीताप्रेस की स्थापना सन् 1923 ई० में हुई थी। इसके संस्थापक महान गीता-मर्मज्ञ श्री जयदयाल गोयन्दका थे। इस सुदीर्घ अन्तरालमें यह संस्था सद्भावों एवं सत्-साहित्य का उत्तरोत्तर प्रचार-प्रसार करते हुए भगवत्कृपा से निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आज न केवल समूचे भारत में अपितु विदेशों में भी यह अपना स्थान बनाये हुए है। गीताप्रेस ने निःस्वार्थ सेवा-भाव, कर्तव्य-बोध, दायित्व-निर्वाह, प्रभुनिष्ठा, प्राणिमात्र के कल्याण की भावना और आत्मोद्धार की जो सीख दी है, वह सभी के लिये अनुकरणीय आदर्श बना हुआ है।
करीब 90 साल पहले यानी 1923 में स्थापित गीता प्रेस द्वारा अब तक 45.45 करोड़ से भी अधिक प्रतियों का प्रकाशन किया जा चुका है। इनमें 8.10 करोड़ भगवद्गीता और 7.5 करोड़ रामचरित मानस की प्रतियाँ हैं। गीता प्रेस में प्रकाशित महिला और बालोपयोगी साहित्य की 10.30 करोड़ प्रतियों पुस्तकों की बिक्री हो चुकी है।
गीता प्रेस ने 2008-09 में 32 करोड़ रुपये मूल्य की किताबों की बिक्री की। यह आँकड़ा इससे पिछले साल की तुलना में 2.5 करोड़ रुपये ज्यादा है। बीते वित्तवर्ष में गीता प्रेस ने पुस्तकों की छपाई के लिए 4,500 टन कागज का इस्तेमाल किया।
गीता प्रेस की लोकप्रिय पत्रिका कल्याण की हर माह 2.30 लाख प्रतियां बिकती हैं। बिक्री के पहले बताए गए आंकड़ों में कल्याण की बिक्री शामिल नहीं है। गीता प्रेस की पुस्तकों की माँग इतनी ज्यादा है कि यह प्रकाशन हाउस मांग पूरी नहीं कर पा रहा है। औद्योगिक रूप से पिछड़े पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस प्रकाशन गृह से हर वर्ष 1.75 करोड़ से अधिक पुस्तकें देश-विदेश में बिकती हैं।
गीता प्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर लालमणि तिवारी कहते हैं, हम हर रोज 50,000 से ज्यादा किताबें बेचते हैं। दुनिया में किसी भी पब्लिशिंग हाउस की इतनी पुस्तकें नहीं बिकती हैं। धार्मिक पुस्तकों में वर्तमान समय में सबसे अधिक माँग रामचरित मानस की है। गोयन्दका ने कहा कि हमारे कुल कारोबार में 35 प्रतिशत योगदान रामचरित मानस का है। इसके बाद 20 से 25 प्रतिशत का योगदान भगवद्गीता की बिक्री का है।
गीता प्रेस की पुस्तकों की लोकप्रियता का कारण यह है कि इनकी पुस्तकें काफी सस्ती हैं। साथ ही इनकी प्रिटिंग काफी साफसुथरी होती है और फोंट का आकार भी बड़ा होता है। गीताप्रेस का उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं है। यहाँ सद्प्रचार के लिए पुस्तकें छपती हैं। गीता प्रेस की पुस्तकों में हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा और शिव चालीसा की कीमत एक रुपये से शुरू होती है।
गीता प्रेस के कुल प्रकाशनों की संख्या 1,600 है। इनमें से 780 प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में हैं। शेष प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलुगू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं। रामचरित मानस का प्रकाशन नेपाली भाषा में भी किया जाता है।
तमाम प्रकाशनों के बावजूद गीता प्रेस की मासिक पत्रिका कल्याण की लोकप्रियता कुछ अलग ही है। माना जाता है कि रामायण के अखंड पाठ की शुरुआत कल्याण के विशेषांक में इसके बारे में छपने के बाद ही हुई थी। कल्याण की लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि शुरुआती अंक में इसकी 1,600 प्रतियाँ छापी गयी थीं, जो आज बढ़कर 2.30 लाख पर पहुँच गयी हैं। गरुड पुराण, कूर्म पुराण, वामन पुराण और विष्णु पुराण आदि पुराणों का पहली बार हिन्दी अनुवाद कल्याण में ही प्रकाशित हुआ था।
योगी आदित्यनाथ गीतापुर प्रेस के संरक्षक[2] हैं।
मुख्य प्रकाशन
गीताप्रेस द्वारा मुख्य रूपसे हिन्दी तथा संस्कृत भाषा में गीताप्रेस का साहित्य प्रकाशित होता है, किन्तु अहिन्दी भाषी लोगों की असुविधा को देखते हुए अब तमिल, तेलुगु, मराठी, कन्नड़, बँगला, गुजराती तथा ओड़िआ आदि प्रान्तीय भाषाओंमें भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं और इस योजना से लोगों को लाभ भी हुआ है। अंग्रेजी भाषा में भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। अब न केवल भारत में अपितु विदेशों में भी यहाँ का प्रकाशन बड़े मनोयोग एवं श्रद्धा से पढ़ा जाता है। प्रवासी भारतीय भी गीता प्रेस का साहित्य पढ़ने के लिये उत्कण्ठित रहते हैं।
विषय कुल बिकी प्रतियाँ श्रीमद्भगवद्गीता 7.19 करोड़ श्रीरामचरितमानस एवं तुलसी-साहित्य 7.00 करोड़ पुराण, उपनिषद् आदि ग्रन्थ 1.90 करोड़ स्त्री एवं बालकोपयोगी साहित्य 9.48 करोड़ भक्त चरित्र एवं भजनमाला 6.51 करोड़
गीता प्रेस की कुछ विशेषताएं
गीताप्रेस की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-[3]
- गीता प्रेस सरकार या किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था से किसी तरह का कोई अनुदान नहीं लेता है।
- गीता प्रेस में प्रतिदिन 50 हजार से अधिक पुस्तकें छपती हैं।
- 92 वर्ष के इतिहास में मार्च, 2014 तक गीता प्रेस से 58 करोड़, 25 लाख पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें गीता 11 करोड़, 42 लाख। रामायण 9 करोड़, 22 लाख। पुराण, उपनिषद् आदि 2 करोड़, 27 लाख। बालकों और महिलाओं से सम्बंधित पुस्तकें 10 करोड़, 55 लाख। भक्त चरित्र और भजन सम्बंधी 12 करोड़, 44 लाख और अन्य 12 करोड़, 35 लाख।
- मूल गीता तथा उसकी टीकाओं की 100 से अधिक पुस्तकों की 11 करोड़, 50 लाख से भी अधिक प्रतियां प्रकाशित हुई हैं। इनमें से कई पुस्तकों के 80-80 संस्करण छपेे हैं।
- यहां कुल 15 भाषाओं (हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगला, उडि़या, असमिया, गुरुमुखी, नेपाली और उर्दू) में पुस्तकें प्रकाशित होेती हैं।
- यहां की पुस्तकें लागत से 40 से 90 प्रतिशत कम दाम पर बेची जाती हैं।
- पूरे देश में 42 रेलवे स्टेशनों पर स्टॉल और 20 शाखाएं हैं।
- गीता प्रेस अपनी पुस्तकों में किसी भी जीवित व्यक्ति का चित्र नहीं छापती है और न ही कोई विज्ञापन प्रकाशित होता है।
- गीता प्रेस से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'कल्याण' की इस समय 2 लाख, 15 हजार प्रतियां छपती हैं। वर्ष का पहला अंक किसी विषय का विशेषांक होता है।
- गीता प्रेस का संचालन कोलकाता स्थित 'गोबिन्द भवन' करता है।
सम्बन्धित संस्थाएं
गीताप्रेस, गोविन्द भवन कार्यालय, कोलकाता का भाग है।
अन्य सम्बन्धित संस्थान हैं :
- गीता भवन, ऋषिकेश
- ऋषिकुल्-ब्रह्मचर्य आश्रम् (वैदिक विद्यालय), चुरू, राजस्थान
- आयुर्वेद संस्थान, ऋषिकेश
- गीताप्रेस सेवा दल (प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता करने के लिये)
- हस्त-निर्मित वस्त्र विभाग
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को मिलेगा 2021 का गांधी शांति पुरस्कार
- ↑ "गीता प्रेस गोरखपुर के दिन बदलेंगे?". मूल से 3 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अप्रैल 2017.
- ↑ गीता प्रेस/रपट - किसने कहा बंद हो गई गीता प्रेस ? [मृत कड़ियाँ]
बाहरी कड़ियाँ
अखंड रामायण भारत की सबसे बड़ धार्मिक वेबसाइट (MNSGranth)
श्रीरामचरितमानस अत्यन्त ही सरल और युवाओ की पहली पसंद (MNSGranth)
वाल्मीकि रामायण अत्यन्त ही सरल और युवाओ की पहली पसंद (MNSGranth)
- बालकाण्ड भाषा संस्कृत, अवधी और हिन्दी भावार्थ सहित (MNSGranth)
- अयोध्याकाण्ड भाषा संस्कृत, अवधी और हिन्दी भावार्थ सहित (MNSGranth)
- अरण्यकाण्ड भाषा संस्कृत, अवधी और हिन्दी भावार्थ सहित (MNSGranth)
- किष्किन्धाकाण्ड भाषा संस्कृत, अवधी और हिन्दी भावार्थ सहित (MNSGranth)
- सुन्दरकाण्ड भाषा संस्कृत, अवधी और हिन्दी भावार्थ सहित (MNSGranth)
- लंकाकाण्ड भाषा संस्कृत, अवधी और हिन्दी भावार्थ सहित (MNSGranth)
- उत्तरकाण्ड भाषा संस्कृत, अवधी और हिन्दी भावार्थ सहित (MNSGranth)
- गीताप्रेस का जालघर
- गीताप्रेस की स्थापना कैसे हुई? (हिन्दी खबर)
- ग्लोबलाइजेशन के दौर में 'गीता प्रेस' (वेबदुनिया)
- चमत्कार है गीताप्रेस की सफलता (प्रात:काल)
- सनातन सांस्कृतिक क्रांति के हिमालय (हनुमानप्रसाद पोद्दर)
- Gita Press: A Century Of Serving The Cause Of Sanatana Dharma