मेरा तन, मन, दर्पण "शिव जी के चरणों में अर्पण"। दरदर भटक के जो भी कमाया... मेरे दोस्त, रिश्ते-नाते , परिवार !! महाकाल कि हि देन , महाकाल का हि सारा धन ! तू सब से निराला नीलकंठेश्वर काश होता हूनर मुझमें भी नफरत का घुट पी के सबको प्यार बाट सकता मगर, मेरे हाथों हुए ऐसे कहीं कर्म जिसका हिसाब तू भी नहीं दे सकता । तेरे पास आने के बाद चाहे मेरे गुनाहों कि जो भी सजा दे '' त्रिकाल के प्रलय से मेरे जिस्म से लेके मेरी रूह तक को जला दे " या, मेरे मरने से पहले हि मेरे सर से अपना हाथ हटा ले....