Pragjyotishapura

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(Redirected from Pragjyotishpura)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Assam State Map

Pragjyotishpura (प्राग्ज्योतिषपुर) , now Guwahati, was a ancient city and capital of Kingdom of Pragjyotisha. It was also capital of medieval Kamarupa Kingdom under Varman dynasty (350 - 650 A.D).[1]

Variants

Etymology

The Pragjyotishpura is derived from Sanskrit. Prag means former or eastern and 'jyotisha' a 'star', 'astrology', 'shining', 'pura' a city thus meaning ' city of eastern light ' otherwise 'city of eastern astrology'.[2]

History

Archeological excavations: Due to the discovery of archaeological sites scattered around Guwahati in plenty such as Ambari, it convinced Archeologists that on digging a meter into the ground at any place in city pieces of pottery, broken stone images or beautifully polished stone blocks will be found. Dr. Medhi, an anthropologist from the Gauhati University has published in one of his research papers that a civilization similar to the Indus Valley civilization flourished in the Brahmaputra Valley. He also said that archaeologists have proved the existence of the city of Pragjyotishpura which is largely said to be buried under the present day city of Guwahati. Dr. Medhi also stated that most archeologists also believed that an ancient city known as Pragjyotishpura is mentioned frequently in the Mahabharata and Ramayana and the Kalika Purana existed in Assam. The location of a temple of planet worship called Navagraha, meaning abode of nine planets of the solar system, and its connection with ancient research on astronomy and astrology lends weight to the origin of its name.[3]

Xuanzang's accounts

Xuanzang visited Pragjyotispura at the time of king Bhaskaravarman and stayed for few months with royal hospitality. He mentioned that the climate was genial. The people were honest. Their speech differed a little from that of mid-India. They were of violent disposition but were persevering students. They worshipped the Devas as Hinduism was sole religion. The Deva-temples were some hundreds in number and the various systems had some myriads of professed adherents. Brahmins and upper caste Hindus make a large chunk of lands population. Being a seat of learning people from other countries visits for studies. The few Buddhists in the country performed their acts of devotion in secret.

In Mahabharata

Pragjyotisha (प्राग्ज्यॊतिष) is mentioned in Mahabharata (II.31.9),(II.47.12), (II.47.14), (VI.83.9), (VI.112.59),

Pragjyotishapura (प्राग्ज्यॊतिषपुर) is mentioned in Mahabharata (III.13.26),

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 31 mentions the Kshatriyas who brought tributes on Rajasuya sacrifice of Yudhisthira. Pragjyotisha (प्राग्ज्यॊतिष) is mentioned in Mahabharata (II.31.9).[4].... and Yajnasena with his sons, and Shalva that lord of earth and that great car warrior king Bhagadatta of Pragjyotisha accompanied by all Mlechcha tribes inhabiting the marshy regions on the sea-shore;....


Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 47 mentions the Kings who brought tributes to Yudhishthira. Pragjyotisha (पराग्ज्यॊतिष) is mentioned in Mahabharata (II.47.12).[5]and (II.47.14)[6]....And that great warrior king Bhagadatta, the brave ruler of Pragjyotisha and the mighty sovereign of the Mlechchas, at the head of a large number of Yavanas waited at the gate unable to enter, with a considerable tribute comprising of horses of the best breed and possessing the speed of the wind. And king Bhagadatta (beholding the concourse) had to go away from the gate, making over a number of swords with handles made of the purest ivory and well-adorned with diamonds and every kind of gems.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 13 mentions Arjuna's recites to angry Krishna the feats achieved in his former lives. Pragjyotisha (प्राग्ज्यॊतिष) is mentioned in Mahabharata (III.13.26).[7]....By destroying the Mauravas and the Pashas, and slaying Nisunda and Naraka. Thou hast again rendered safe the road to Pragjyotishapura!


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 83 describes the array of the Kauravas army against the Pandavas in Mahabharata War. Pragjyotisha (प्राग्ज्यॊतिष) is mentioned in Mahabharata (VI.83.9). [8]....Behind Bhagadatta of Pragjyotisha was Vrihadvala the king of the Kosalas accompanied by the Mekalas, the Tripuras, and the Chichhilas.


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 112 mentions tribes fighting the Mahabharata War. Pragjyotisha (प्राग्ज्यॊतिष) is mentioned in Mahabharata (VI.112.59). [9]....Then, O elder brother of Pandu, the ruler of Pragjyotishas, abandoning that son of Pandu, quickly proceeded, O king, against the car of Drupada.

प्राग्ज्योतिषपुर (असम)

विजयेन्द्र कुमार माथुर[10] ने लेख किया है ...प्राग्ज्योतिषपुर (AS, p.590) अथवा प्राग्ज्योतिष असम या कामरूप की प्राचीन राजधानी थी, जो गुवाहाटी के निकट बसी हुई थी. इसे किरात देश के अंतर्गत समझा जाता था. 'कालिकापुराण' के अनुसार ब्रह्मा ने प्राचीन काल में यहाँ स्थित होकर नक्षत्रों की सृष्टि की थी. इसलिए इंद्रपुरी के समान यह नगरी प्राग् (पूर्व या प्राचीन) + ज्योतिष (नक्षत्र) कहलायी-- 'अत्रैव हि स्थितो ब्रह्मां प्राङ्- नक्षत्रं समार्ज ह, ततः प्राग्ज्योतिषाख्येयं पुरी शक्रपुरी समा'. महाभारत सभा. 38 में यहाँ के राजा नरकासुर का श्रीकृष्ण द्वारा वध किये जाने का उल्लेख मिलता है।

नरकासुर ने 16 सहस्र कुमारियों का अपहरण करके इनके रहने के लिए मणिपर्वत पर अंत:पुर का निर्माण किया था. श्री कृष्ण ने नरकासुर के वध के उपरांत इन स्त्रियों को मुक्त कर दिया और मणिपर्वत को उठा कर वे द्वारका ले गए-- 'प्राग्ज्योतिषं नाम वभूव दुर्गं पुरं घोरमसुराणामसह्यम् महाबलो नरकस्तत्र भौमो जहारादित्या मणिकुण्डले शुभे' उद्योग पर्व 48,80.[11]

प्राग्ज्योतिषपुर के निकट की निर्मोचन नामक नगर था जहां नरकासुर ने 6 सहस्र लोहमय तिक्ष्ण पाश नगर की रक्षा के लिए लगा रखे थे. 'निर्मोचने षट्सहस्राणि हत्वा संच्छिद्य पाशान्सहसा क्षुरान्तान्',उद्योग पर्व 48, 83.[12]

कामरूप-नरेश भगदत्त ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से भाग लिया था. महाभारत में भगदत्त को प्राग्ज्योतिष-नरेश भी कहा गया है-- 'तत: प्राग्ज्योतिषः क्रुद्धस्तोमरान् वै चतुर्दश, प्राणिहोततस्य नागस्य प्रमुखे नृपसत्तम-- भीष्म.95,46. प्राग्ज्योतिषपुर के राजा नरकासुर और श्री कृष्ण के युद्ध का वर्णन विष्णु पुराण 5,29 में भी है और महाभारत के वर्णन के अनुसार ही इसमें नरकासुर द्वारा नगर की रक्षार्थ तीक्ष्ण धार वाले पाशों के आयोजन का उल्लेख है-- 'प्राग्ज्योतिषपुरस्यापि समन्ताच्छशतयोजनं, आचिता मौरवैः पाशैः क्षुरान्तैर्भूर्द्विजोत्तम'-- विष्णु 5,29,16.

कालिदास ने रघुवंश 4,81 में रघु द्वारा प्राग्ज्योतिष नरेश की पराजय का काव्यमय वर्णन किया है--

[p.591]: 'चकम्पे तीर्णलौहित्येतस्मिन् प्राग्ज्योतिषेश्वर: तद्गजालानतां प्राप्तैः सहकालागुरुद्रुभैः।' अर्थात दिग्विजय यात्रा के लिए निकले हुए रघु के लौहित्य या ब्रह्मपुत्र को पार करने पर प्राग्ज्योतिषपुर नरेश उसी प्रकार भयभीत होकर कांपने लगा जैसे उस देश के कालागुरु के वृक्ष जिनसे रघु के हाथियों की श्रृंखलाएं बंधी हुई थी. इस श्लोक में कालिदास ने प्रगज्योतिष या असम के वनों में पाए जाने वाले कालागुरु के वृक्षों, वहां के हाथियों तथा असम की मुख्य नदी लौहित्य एकत्र वर्णन करके इस प्रांत की स्थानीय विशेषताओं का सुंदर चित्रण किया है. कालिदास के अनुसार प्राग्ज्योतिषपुर 'लौहित्य' (ब्रह्मपुत्र) के पार पूर्वी तट पर बसा हुआ था.

वी.बी. आठवले प्राग्ज्योतिषपुर को आनर्त या काठियावाड़ में स्थित मानते हैं. (दे. भारतीय विद्या, बम्बई सं 11). किन्तु यह सम्भव है कि इस नाम के दो नगर या जनपद रहे हों.

प्राग्ज्योतिषपुर परिचय

प्राग्ज्योतिष का अन्य नाम कामाख्या भी मिलता है। प्राचीन काल में प्राग्ज्योतिषपुर में एक शैव मन्दिर था। कामाख्या महान् तांत्रिक केन्द्र के रूप में विख्यात था। महाभारत तथा पुराणों में प्राग्ज्योतिष का उल्लेख है। रामायण के अनुसार कुश के पुत्र अमूर्तराज ने यहाँ की राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर को बसाया था। कामरूप नरेश भगदत्त ने कौरवों की ओर से युद्ध में भाग लिया था। महाभारत में भगदत्त को प्राग्ज्योतिष नरेश भी कहा गया है। वराहमिहिर, राजशेखर आदि इसे पूर्व का देश मानते हैं। समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में हरिषेण ने स्पष्टतः यहाँ के शासक को समुद्रगुप्त के अधीन बताया है।

अपसढ़ के लेख में परवर्ती गुप्त शासक महासेन गुप्त द्वारा लौहित्य के तट पर कामरूप के शासक सुस्थित्वर्मा की पराजय का उल्लेख है।

हर्षचरित तथा युवानच्वांग के वृत्तांत में भी प्राग्ज्योतिष का वर्णन है। हर्षचरित उल्लेख करता है कि प्राग्ज्योतिष नरेश ने हंसवेग नामक दूत हर्ष के पास भेजा था।

युवानच्वांग लिखता है कि वह कामरूप के शासक भास्कर वर्मा के अनुरोध पर कामरूप आया था। युवानच्वांग लिखता है कि भूमि ऊँची-नीची लेकिन उपजाऊ और नम थी तथा निवासी ईमानदार और मेहनती थे। उसने आगे लिखा है कि यहाँ के निवासी कृष्ण मतावलम्बी थे।

संदर्भ: भारतकोश-प्राग्ज्योतिषपुर

See also

External links

References

  1. Chaudhury, P. D. (2010). Archaeology in Assam: An Introduction. Directorate of Archaelogy, Assam. p. 17.
  2. Indian History Congress (1960). Proceedings, Indian History Congress. Indian History Congress. p. 43.
  3. Sonalker, Manoher V. (2007). India: The Giant Awakens!. Atlantic Publishers & Dist. p. 159.
  4. यज्ञसेनः सपुत्रश च शाल्वश च वसुधाधिपः, प्राग्ज्यॊतिषश च नृपतिर भगथत्तॊ महायशाः (II.31.9)
  5. प्राग्ज्यॊतिषाधिपः शूरॊ मलेच्छानाम अधिपॊ बली, यवनै: सहितॊ राजा भगदत्तॊ महारदः (II.47.12)
  6. अश्मसारमयं भाण्डं शुथ्धथन्तत्सरून असीन, प्राग्ज्यॊतिषॊ ऽद तद दत्त्वा भगदत्तॊ ऽवरजत तथा
  7. सादिता मौरवाः पाशा निसुन्द नरकौ हतौ, कृतः क्षेमः पुनः पन्थाः पुरं प्राग्ज्यॊतिषं परति (III.13.26)
  8. प्राग्ज्यॊतिषाद अनु नृपः कौसल्यॊ ऽद बृहथ्बलः, मेकलैस त्रैपुरैश चैव चिच्छिलैश च समन्वितः (VI.83.9)
  9. प्राग्ज्यॊतिषस ततॊ हित्वा पाण्डवं पाण्डुपूर्वज, परययौ तवरितॊ राजन द्रुपदस्य रथं परति (VI.112.59)
  10. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.590-591
  11. महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-048.80
  12. महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-048.83