Sahansheelta: Aadrash Vekatut Hetu Aaniwary
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About this ebook
Too aaiee, jatil, bhayaavah aur badahavaas kar dene vaalee paristhitiyon mein bhee hansate-hansate jeena seekhein;
Har kasht, har vipatti, har tarah ke ulajhanon aur pareeshaaniyon ke prahaaron ko fuulon kee varsha kee tarah lein;
Saagar kee tarah dheer, gambheer aur shaant ban jaayein;
Chattaanon ke samaan har tarah ke choton ko sahana seekhein.
Parvat kee tarah aandhee, tuufaan aur varsha mein bhee adig khade rahein.
Kya aap mein aisa banane kee ichchha-shakti, saahas evan aatmavishvaas hai?;
Yadi hai, to sachamuch aap nishchit ruup se sarvagun sampann ban jaayeinge tatha dhairy evan sahanasheelata aapakee rag-rag mein rach-bas jaayegee;
Kya aapakoo maaluum hai ki dhairy evan sahanasheelata hee vah disha nirdeshak yantra hai, jo unnati ka sahee raasta dikhaata hai? Is anuuthee pustak mein bataayee gayee bahumuuly upaay aapakoo safalata ke sarvochch lakshya kee taraf avashya hee le jaayengee.(Do you want to succeed in life using the ladder of patience? Life moves at a frenetic, fast-forward pace, and that makes patience even harder to practice. Yet, the ability to tolerate delay without getting upset is a must-have quality that contributes to our greater sense of well-being and success in life. Patience creates feelings of peace and calm, as opposed to the anger and frustration that often arises with impatience. And finding a way to be at ease mentally while waiting in a doctor’s office or sitting in a traffic jam can also help us stave off stress-related illnesses, including high blood pressure and autoimmune disease. This book shows you ways to achieve that patience we all long so earnestly. ) #v&spublishers
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Sahansheelta - Pavitra KumarSharma
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स
ISBN 978-93-505768-6-1
संस्करण 2021
DISCLAIMER
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प्रकाशकीय
वी एण्ड एस पब्लिशर्स पिछले अनेक वर्षों से जनरुचि एवं आत्मविकास सम्बंधी पुस्तक प्रकाशित करते आ रहे हैं। पुस्तक प्रकाशन की अगली कड़ी में हमने 'सहनशीलता' पुस्तक प्रकाशित किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में व्यक्ति के आत्मविकास में सहायक महान् गुण सहनशीलता को अपनाये जाने से उसके व्यक्तित्व में होने वाले लाभों पर गहन चर्चा की गई है। पुस्तक में सहनशीलता को अपनाने के लिए कई आसान उपायों की जानकारी दी गई है जिसको व्यवहार में लाने से आपका व्यक्तित्व सफल और सुंदर बन सकता है।
हमें आशा है कि यह पुस्तक हमारे पाठकों द्वारा अवश्य सराही जाएगी। पुस्तक में पायी गई किसी त्रुटि या आपके बहुमूल्य सुझाव के लिए आप हमारे पते अथवा इमेल पर सम्पर्क कर सकते हैं।
विषय-सूची
कवर
मुखपृष्ठ
प्रकाशक
प्रकाशकीय
विषय-सूची
1 सहनशीलता : अर्थ की गहराइयाँ
2 सहनशीलता से लाभ
3 असहनशीलता से हानियाँ
4 सहनशील व्यक्ति ही सबसे महान्
5 क्षमाभाव अपनाएँ
6 शुभ सोचें, शुभ बोलें, शुभ कर्म करें
7 शत्रुता के भाव से मुक्त रहें
8 सद्गुणों को धारण करें
9 हमेशा बड़ों का आदर करना सीखें
10 रूखे न रहें, रूठे न रहें, मिलनसार बनें
11 सदैव श्रेष्ठ लक्ष्य रखें
12 गौतम बुद्ध की सहनशीलता
13 ईसा मसीह की सहनशीलता
14 महात्मा गाँधी की सहनशीलता
भीमराव अम्बेडकर की सहनशीलता
16 दयानंद सरस्वती की सहनशीलता
17 विवेकानंद की सहनशीलता
18 रामकृष्ण परमहंस की सहनशीलता
19 भगवान विष्णु की सहनशीलता
20 सदा व्यस्त और मस्त रहिए
21 माया के सारे चक्रों से बचें
22 मोह और आसक्ति को मिटाते जाएँ
23 अपना आत्मबल बढ़ाएँ
24 सत्संग में रुचि लें
25 सदा ईश्वर चिंतन करते रहें
26 सबको अभिनेता मानकर चलें
27 यश प्राप्ति की अत्यधिक इच्छा न रखें
28 क्रोधी व्यक्ति के ऊपर दयाभाव रखिए
29 मनोभावों को पढ़ने से क्या फायदा ?
30 प्रत्येक कर्म निष्ठा एवं लगन के साथ करें
31 जीवन में आदर्श अपनाएं
32 भेड़चाल की तरह न चलें
33 जग के धोखों से स्वयं को बचाएँ
34 साहसी एवं त्यागी बनें
35 अधिक संचय एवं लोभवृत्ति से बचें
36 अहंकार से दूर रहें
37 कोमलता, हर्ष एवं मधुरता अपनाएँ
38 समय के अनुसार अपने को मोड़ें
39 अपनी जाँच स्वयं करें
40 मन में ज्ञान का प्रकाश फैलाएँ
41 साधना करना सीखें
42 स्वाभिमान बनाए रखें
43 शरीर को यंत्र समझकर कार्य करें
44 एकांत के महत्त्व को समझें
45 अपने सहायक स्वयं बनें
46 संसार में अपने को अकेला न समझें
47 सप्ताह में एक दिन मौन व्रत रखें
48 अधिक वाचाल होने से बचें
49 विकृत कामवासना त्यागें
1
सहनशीलता : अर्थ की गहराइयाँ
'सहनशीलता' दो शब्दों की सन्धि (सहन + शील) से बना हुआ शब्द है। इस प्रकार सहनशीलता को कायम रखने के लिए आदमी में दो बातों का होना अत्यंत ज़रूरी है :
(1) सहनशक्ति तथा (2) शील स्वभाव ।
यदि परिस्थिति को शील या संतोष-भरे स्वभाव से नहीं सहा जाए, तो वह सच्ची सहनशीलता नहीं कहला सकती। कुछ लोग 'परिस्थितियों से मजबूरी में किए हुए समझौते' को सहनशीलता मानते हैं, किन्तु ऐसी दशा में आदमी अपने आपको बोझ से दबा हुआ महसूस करता है। वह चाहकर भी सहज नहीं हो पाता।
शील स्वभाव का मतलब है - धैर्य, संतोष, त्याग तथा सहजता। ऐसे लोग स्वभाव से बहुत मधुर प्रकृति के होते हैं
सहनशीलता सागर जैसी गंभीर मनोदशा की अपेक्षा रखती है। वास्तव में गंभीर, शांत तथा अंतर्मुखी रहने वाला व्यक्ति ही जीवन की हर चोट सहन कर पाता है। ऐसे लोगों को अपनी मान-प्रशंसा या दिखावा पसंद नहीं होता।
सच्चा सहनशील व्यक्ति त्यागी पुरुष होता है। वह दूसरों की सुख शान्ति के लिए अपना दिन का चैन तथा रातों की नींद भी गँवा देता है। अक्सर परोपकार के अच्छे कार्यों में व्यस्त रहता है।
आम आदमी के लिए जीवन में सहनशील बनना बहुत जरूरी है किन्तु, सच पूछा जाए तो सहनशीलता एक प्रकार की साधना या तपस्या है। जिस प्रकार आध्यात्मिक मार्ग का साधक माया के हर रूप विघ्न को सहन करता है। उसी प्रकार सहनशील व्यक्ति को अपना अपमान, निंदा, अपनी बुराई इत्यादि सभी कुछ सहन करना पड़ता है।
जिस प्रकार आग